अंधेरे की अंजली - भाग 3

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1945 की शुरुआत...भारत छोड़ो आंदोलन को तीन साल हो चुके थे। देश के कई हिस्सों में स्वतंत्रता की लौ जल रही थी, लेकिन अंग्रेजों का शिकंजा अभी ढीला नहीं हुआ था। इसी बीच, अंजलि की टोली की गतिविधियाँ तेज़ हो गई थीं। अंग्रेज अफसरों को शक होने लगा था कि कहीं कोई नेत्रहीन बच्चों की टुकड़ी ही तो गुप्त संदेशवाहक नहीं बन गई?जिस दिन अंजलि के गुप्त केंद्र पर छापा पड़ा और वह गिरफ़्तार हुई, वह बारिशों का दिन था। हवा में अजीब बेचैनी थी। सिपाहियों ने उसे बाँधकर जीप में डाला और पटना के ब्रिटिश खुफिया दफ्तर ले गए।