साल 1942...पूरा देश गांधी जी के "भारत छोड़ो आंदोलन" के आह्वान से उबल रहा था। हर गली, हर नुक्कड़, हर दिल में क्रांति की आग धधक रही थी। और इसी आग की तपिश में अंजलि शास्त्री की आत्मा भी तप रही थी। अब वह 12 साल की हो चुकी थी। नेत्रहीनता उसकी कमजोरी नहीं, उसका शस्त्र बन चुकी थी।पटना के पास एक छोटे से गाँव में रहते हुए भी अंजलि की बातें आस-पास के इलाकों में फैलने लगी थीं। लोग कहते – “वो अंधी लड़की है, पर बोलती है तो जैसे देश की आत्मा बोल रही हो।”अंजलि अब न सिर्फ