काल कोठरी उपन्यास की सत्य कहानी ------ कहने को जो मर्जी किसी को बोलने दो, बोले हम किसी का मुँह नहीं पकड़ सकते। बहुत बातो का सामना करना पड़ता है जिम्मेदारी से, पर घोसले साहब केस को हेडल करते हुए आज पांचवे दिन मे चले गए थे ---- लापरवाह होने की मोहर लगना ही बाकी था... पर दीपक समय पे पहुंचा ही था.. फोटोग्राफरो ने घेर लिया था, पत्रकारों को कया जवाब दें.. कुछ सूझ ही नहीं रहा था। मरीजों से जयादा तो लोगों और पत्रकारों ने हॉस्पिटल को ठहराव बना लिया था। मकसद था कोने कोने से भी वो किसी की