इश्क और अश्क - 62

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उन लोगों ने अपने-अपने हाथों में तीखे-तीखे खंजर ले रखे हैं।वर्धांन:(अपने सहारे से खड़े होते हुए)“मैंने अपनी ताक़त खो दी है... पर हिम्मत नहीं!”घुसपैठिए (करीब आते हुए):“अच्छा! तो आओ... दिखा दो अपनी हिम्मत!”वो लोग वर्धांन की तरफ बढ़ते जा रहे हैं।वर्धांन ने वहीं से एक लकड़ी उठाकर उनके रास्ते में फेंकी, जिससे उलझकर वो चारों-पांचों गिर पड़े।एक घुसपैठिया (दाँत पीसते हुए):“रस्सी जल गई... लेकिन बल नहीं गया!”और वो सब एक साथ वर्धांन पर हावी हो गए...वर्धांन ने अपनी पूरी ताक़त से मुकाबला किया,पर इस वक़्त उनका जोर उस पर भारी पड़ रहा था।तभी जंगल के एक तरफ़ से एक आवाज़