वर्धांन: हां तो मैं कहीं फँस गया होऊंगा… ये तुमने सोचा कभी?प्रणाली (कुछ याद करते हुए): अरे हां… तुम्हें तो चोट लगी थी ना…(वो वर्धांन को दोनों हाथों से पकड़कर ध्यान से देखने लगती है।)वर्धांन को उसकी ये फ़िक्र बहुत प्यारी लगती है।वो देखती है कि वर्धानं उसे घूर रहा है।प्रणाली (गुस्से में): अरे… मुझे क्या देख रहे हो! कुछ पूछ रही हूँ मैं?वर्धांन (हल्की मुस्कान के साथ): ये पूछ लेती तो कब का ठीक हो गया होता।पता है पर उस हालत में भी ऐसा लगा कि तुम मेरे पास आई थीं… तुमने मुझे छुआ और कहा — "तुम जल्दी