इश्क और अश्क - 54

अब रात्रि बाजार से होकर दूसरी ओर अपनी सवारी मंगवाती है, और बैठकर आगे बढ़ने लगती है।सवारी अभी कुछ ही दूर पहुँची थी कि अचानक एक शख्स सामने आकर खड़ा हो गया, और पालकी के आगे सिर झुका कर बैठ गया।आगे खड़े रक्षक ने पूछा —"ए! कौन है तू? दिख नहीं रहा, शाही सवारी है? हट जा यहाँ से!"शख्स ने सिर झुकाए कहा:"मैं एक फरियादी हूँ जनाब… राजकुमारी से गुज़ारिश करने आया हूँ, और मदद की उम्मीद रखता हूँ।"रक्षक ने तलवार निकालते हुए कहा —"ऐसे छलावे तो हमने बहुत देखे हैं शाही सवारियों में..."वो शख्स अब भी विनती कर रहा