श्री बप्पा रावल श्रृंखला खण्ड-दो - तृतीय अध्याय

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तृतीय अध्याय राजस्व की लूटदेबल (सिंध का तटराज्य) (एक मास उपरांत)गऊओं को हाँकता चरवाहा चहुँ ओर दृष्टि घुमाता अपने पशुओं पर छड़ी लहरा रहा था, मानों उसकी फैलती आँखें आसपास के संभावित संकट को लेकर शंकित हों। सूर्य ढलने को था, जिसका संकेत पाकर गऊएं स्वयं ही बड़ी तीव्रगति से गौशाला की ओर लौट रही थीं। पशुओं को गौशाला में भेजने के बाद तन से अत्यंत दुर्बल दिखने वाला वो चरवाहा दायीं ओर के बीस कदम दूर अपनी खपड़ैल सी झुग्गी की ओर बढ़ा। उसके गालों के गड्ढे और शरीर पर उभरी हुयी हड्डियाँ देख ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों