सर्दियों की एक सुबह थी। सूरज की किरणें बादलों से आंख-मिचौली खेल रही थीं। अन्वी, जो हमेशा भीड़-भाड़ और शोर से घिरी रहती थी, इस बार अकेले सफर पर निकलने का मन बना चुकी थी। मोबाइल की नोटिफिकेशन और दिनभर की भागदौड़ से दूर — बस एक यात्रा, खुद के लिए।उसने एक छोटा-सा बैग पैक किया, कैमरा उठाया और चल पड़ी — हिमाचल के एक अनजाने गांव 'झिरी' की ओर।बस की खिड़की से बाहर देखते हुए उसे लगा जैसे हर पेड़, हर मोड़ उसे कुछ कह रहा हो। रास्ते में उसने खुद को दोबारा पढ़ा — वो किताब जो कभी