रचना: बाबूल हक अंसारीगाँव में पहली बार अजय का नाम खुलेआम लिया गया।माँ ने सुधीर को सीने से लगाते हुए कहा —"आज तू सिर्फ़ मेरा बेटा नहीं… तू एक कहानी का आख़िरी किरदार भी बन गया।"सुधीर की आँखों में आँसू थे, मगर दिल में संतोष। इतने वर्षों से जो बात उसके दिल में कुचली पड़ी थी, आज वो पूरे देश के सामने थी।इधर शहर में, न्यूज चैनल पर विशेष कार्यक्रम चला — "अलौकिक सच: एक गुमनाम ओलंपियन की विरासत।"अजय चौहान की पुरानी तस्वीरें, उनका रिकॉर्ड, गाँव की मिट्टी, माँ का इंटरव्यू — सब कुछ दिखाया गया।रात गहराने लगी थी। सुधीर