यार पापा लेखक दिव्य प्रकाश दुबे ये कहानी है रिश्तों की , दोस्ती की ,प्यार की, गलतफहमियों और महत्वकांक्षाओं की कई बार जीवन में हम सब कुछ पा लेने की जिद में अपनो को अपने रिश्तों को नजर अंदाज कर बैठते है और हमें पता हो नहीं चलता के क्या पाने की चाहत में हम क्या खो बैठे हैं ! नाम पैसा और शौहरत की चमक में हमें अपनो को छोटी छोटी खुशियां दिखाई नहीं देती और हम अपने रिश्तों को खराब कर देते है ...! यार पापा ... जैसा के नाम से ही लग रहा है के ये कहानी है मशहूर वकील