रचना: बाबुल हक अंसारीसुधीर की आंखों में अब पहली बार शांति थी। वह रात, जब उसने हवेली में जाकर कहा — “अब मुझे रोका नहीं जाएगा” — उसके बाद से वो किसी गहरी नींद में सोया। कई दिनों बाद वो बिना किसी डर, बिना नींद में चलने की आदत के, सुबह उठा। मां के चेहरे पर मुस्कान थी, लेकिन भीतर अब भी आशंका की लकीरें थीं।गांववालों को लगने लगा कि कहानी अब खत्म हो गई है। अजय की आत्मा शायद शांति पा चुकी है। लेकिन मुकुंद जी को ऐसा नहीं लगा। उन्होंने सुधीर से अकेले