प्रणाली भागते-भागते तालाब के पास पहुँचने ही वाली थी,लेकिन उससे पहले ही सामने से सैनिकों ने उसे घेर लिया।सैनिक: तो है ये वो बहुरूपिया? चल, अब हमारे साथ—गरुड़ के पास।रात बहुत काली और घनी थी, किसी का चेहरा ठीक से दिख नहीं रहा था।सैनिक जब उसका नकाब हटाने लगे, तभी एक तलवार की नोक एक सैनिक की गर्दन पर आ टिकी।साथ ही एक तेज़, ठंडी आवाज़ गूंजी—रहस्यमयी आवाज: एक अकेले पर इतने लोग?थोड़ी गलत बात नहीं लग रही?चाँद कभी बादलों से निकल रहा था, कभी उन्हीं में गुम हो जा रहा था।इसी आती-जाती रोशनी में उस शख्स की आँखें एक