सेहरी, सिवइयाँ और इजहार️("कुछ बातें दुआओं में कही जाती हैं... और कुछ, सेहरी की सादगी में सुन ली जाती हैं।")रमज़ान का पहला हफ्ता था। पटेल नगर की गलियों में शाम को इफ़्तार की खुशबू तैरती है, और मस्जिदों से तरावीह की आवाजें आती है। दानिश रोजे से था। लेकिन लाइब्रेरी की पढ़ाई ज़रा धीमी पड़ गई थी क्योंकि शरीर थकता नहीं था, बल्कि दिल कहीं और उलझा था।एक इशारा, जो था साथ में दस्तरखान (खाना रखकर खाने की कालीन) साझा करने काउस दिन जब लाइब्रेरी बंद हो रही थी, दानिश ने आरजू से नजरों के जरिये कुछ कहना चाहा -