अनकही दास्तां (शानवी अनंत) - 4

इश्क़ की वो पहली परछाई"जहां दूरी भी एक रिश्ता बन जाती है...."उस मुलाक़ात को अब कुछ हफ़्ते हो चुके थे।दिल्ली की गर्मी बढ़ने लगी थी,लेकिन मेरे दिल में एक अलग सी ठंडक थी --शानवी की मुस्कान की ठंडक।उस एक मुलाक़ात ने हमें बदला नहीं था,पर हमारे बीच कुछ बदल ज़रूर गया था।अब हम सिर्फ बातें नहीं करते थे,हम एक-दूसरे की "जिंदगी का हिस्सा" बन चुके थे।उसने पहली बार कहा --"अनंत, जब तुमसे बात नहीं होती,तो लगता है जैसे दिन पूरा नहीं हुआ।"मैंने कुछ नहीं कहा उस पल….बस चुप रहकर सुनता रहा --क्योंकि उसकी ये बात,मेरे लिए किसी इज़हार से कम