रात के सन्नाटे में हवेली की सीढ़ियाँ ठंडी पड़ चुकी थीं।अदित्य अब भी वहीं खड़ा था, और ऊपर बालकनी में खड़ी रूहाना... उसकी तरफ देखकर मुस्करा रही थी, जैसे कोई खेल शुरू करने वाला हो।“उस आँसू का रंग लाल क्यों था?”अदित्य की आवाज़ अब सख़्त थी।रूहाना ने बिना पलक झपकाए कहा —“तुम्हें कभी गुलाब की जड़ से रिसता लाल रस देखा है? बस... वैसा ही था।”“तुम कोई गुलाब नहीं हो,” अदित्य ने तड़पते हुए कहा।“फिर क्या हूँ?” उसकी मुस्कान अब हल्के सवाल में बदल गई।“पता नहीं...”अदित्य ने गहरी साँस ली,“पर जो भी हो... इंसान नहीं लगती।”रूहाना एक पल को चुप