इश्क और अश्क - 18

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प्रणाली (जोर से):"जो भी है... बाहर आओ।मैं जानती हूं मैं यहां अकेली नहीं हूं!"(चारों तरफ से नकाबपोश निकलते हैं – 6 लोग)लड़ाई शुरू होती है!प्रणाली बहादुरी से लड़ती है... पर संख्या भारी पड़ती है।---पेड़ की डाल पर एक रहस्यमय युवक ऊपर एक शाख पर बैठा लड़ाई देख रहा है – मजबूत, लंबा, गेरुआ वस्त्र, चेहरा तेज़…युवक (मुस्कुराकर):"मानना पड़ेगा... तुम कमाल की योद्धा हो...पर समझदारी भी कोई चीज होती है।हर लड़ाई ताकत से नहीं... कभी-कभी पीछे हटना भी हुनर होता है।"प्रणाली (बिना देखे):"तो मौका क्यों गंवा रहे हो?आओ... हरा दो मुझे भी!"युवक बात को आगे बढ़ाता है: मदद ले लो अकेली