इश्क और अश्क - 13

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फिर उसने सांस देने के लिए रात्रि के होठों पर अपने होठ रख दिए और सांस देने लगा...ठंडी बारिश की बूँदें उनके चेहरों पर पड़ रही थीं और उस तालाब के किनारे एक अधूरी मोहब्बत की साँसें रुकती जा रही थीं...आसमान में जैसे कोई शैतान जाग उठा हो…घनघोर काले बादल उमड़ आए —बिजली कड़कने लगी, हवाएं पागल हो चुकी थीं, जैसे सब कुछ उड़ा ले जाएंगी।हर पल… हर सेकंड… लगता जैसे किसी श्राप की घड़ी शुरू हो चुकी है।पर ये क्या……?!रात्रि की सांसें सुधरने के बजाय और मंद हो गईं।उसके होठों की नमी ठंडी होने लगी थी… जैसे प्रेम हार