"तुम्हारे बिना अधूरा हूँ मैं: सुस्मिता और बिकाश की आखिरी दास्तान"बिकाश हमेशा से एक शांत, गहराई से सोचने वाला लड़का था। उसे किताबों में खो जाना पसंद था, और वो अक्सर भीड़ में भी खुद को अकेला महसूस करता था। उसकी ज़िंदगी एक सीधी लकीर की तरह चल रही थी — न कोई हलचल, न कोई तूफान।लेकिन फिर आई सुस्मिता, एक तूफान की तरह… मगर मुस्कुराहटों से भरा हुआ।कॉलेज की लाइब्रेरी में पहली बार दोनों की मुलाकात हुई। सुस्मिता हंसमुख थी, चुलबुली थी और ज़िंदगी को पूरी तरह जीने में यकीन रखती थी। वहीं बिकाश — कम बोलने वाला,