जब भी कोई व्यक्ति जीवन मे समाज राष्ट्र के विकार विकास उद्भव अवसान को स्वंय देखता अनुभूति करता है और स्थिति काल परिस्थिति में अपने पराक्रम पुरुषार्थ कि अनुभूति करता है या कराने का प्राण पण से प्रयत्न करता है तो उसके प्रयत्न को समय काल अपनी पैनी दृष्टि से निहारता है और राष्ट्र समाज के समक्ष निर्णय हेतु प्रस्तुत कर देता है!जिसकी व्यख्या समयानुसार बदलते काल वक्त में होता रहता है साथ ही साथ उसके प्रभावों को पुनर्जीवित करने हेतु पुनरक्षित करने का दृढ़ता पूर्वक प्रयास करता है!व्यक्ति किसी भी क्षेत्र का सफल शिखर व्यक्ति हो सकता है कला