देवांजना

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साल 2020 था। सड़कें वीरान थीं, स्टेशन सूने पड़े थे, और हर राज्य, हर देश से लोग अपने-अपने घर लौट रहे थे — कोरोना की महामारी अपनी चरम सीमा पर थी , सभी ट्रेन बंद कर दी गई थीं,   कई तो पैदल ही चल पड़े थे, जैसे ज़िंदगी से जूझने का सफर शुरू हो चुका हो।   इसी बीच, जब सब अपनी जड़ों की ओर लौट रहे थे — मैंने उल्टा फैसला लिया। मैंने तय किया कि अब मुझे घर से दूर जाना है — जहां सिर्फ मैं रहूं और मेरी पहचान का कोई न हो।   क्यों?