इश्क़ बेनाम - 18

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18-q देह-आत्मा और संतुलन  शिवालिक की तलहटी में वर्षा ऋतु अपने चरम पर थी। रावी नदी, जो कभी शांत और चमकदार थी, अब बादलों की गर्जना और बरसते पानी के वेग से उफन रही थी। वर्षा ने चारों ओर एक रहस्यमय आवरण बुन दिया था। पेड़ों की पत्तियाँ बूँदों से भीगीं, हवा में मिट्टी की सोंधी खुशबू तैर रही थी। पर्यूषण पर्व का पवित्र समय चल रहा था, जब जैन समुदाय आत्म-शुद्धि, क्षमा, और प्रायश्चित की साधना में लीन था। लेकिन यह मौसम और यह पर्व मंजीत और राघवी के लिए विरह की अग्नि में तपने की घड़ी बन चुका