इश्क़ बेनाम - 14

14 बदलती जिंदगी रावी नदी का पानी अब भी उसी मंथर गति से बहता था। दस साल गुजर गए, मगर शिवालिक की तलहटी की शांति और पक्षियों की चहचहाहट में कोई बदलाव नहीं आया। कस्बे की गलियों में अब भी वही पुरानी हवा बहती थी, जो कभी पठानकोट में बहती और रागिनी और मंजीत की कहानी को अपने साथ बहा ले जाती। मगर रागिनी अब साध्वी राघवी बन चुकी थी, और मंजीत एक स्कूल के वार्डन की जिंदगी जी रहा था।  दोनों एक ही नदी के किनारे थे, मगर उनकी राहें नहीं टकरातीं। दस साल की यह दूरी एक अनजानी