इश्क़ बेनाम - 12

12 रागिनी से राघवी और यह उन्हीं दिनों की बात है, कि जब वह आश्रम से लौट रही थी, मंजीत अचानक सामने आ गया। उसका चेहरा थका-हारा था, आँखों में पश्चाताप झलक रहा था। उसने कहा, ‘रागिनी, मैंने जिस सम्पत्ति के लिए तुम्हें छोड़ा, नताशा वह सम्पत्ति मुझ पर छोड़कर सदा को चली है। वह मुझसे तुम्हें छुड़ाने के लिए ही आई थी...। मानता हूं, मैंने बहुत गलतियां कीं, पर एक मौका दो, मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता!" रागिनी ने उसकी आँखों में देखा, लेकिन उसका मन नहीं डगमगाया। उसने शांत स्वर में कहा, "मंजीत, मैंने तुम्हें क्षमा कर दिया