इश्क़ बेनाम - 11

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11 साधना की राह रागिनी का परिवार जैन धर्मावलम्बी था। उसके पिता, प्रकाशचंद, एक आध्यात्मिक पुरुष थे, जो हर सुबह और शाम तत्वार्थ सूत्र का स्वाध्याय करते थे। उनकी मेज पर हमेशा यह ग्रंथ और कुछ अन्य जैन साहित्य की पुस्तकें रखी रहतीं। माँ नियमित रूप से पास के जैन मंदिर में पंच परमेष्ठी की पूजा करने और प्रवचन सुनने जाती थीं। बचपन में रागिनी भी माँ के साथ मंदिर जाती थी, लेकिन उसका मन तब किशोरवय की उड़ानों में खोया रहता था। पिता का स्वाध्याय उसे उबाऊ लगता था, और माँ की भक्ति एक रस्म सी। मगर अब, जब