08 सच का सामना वो पन्द्रह दिन भी परिवार ने जैसे तैसे काट लिये। रमा जब पुनः आ गई, फिर वही चहल-पहल। माँ अब पहले से अधिक खुश। तब एक शाम पिताजी ने रागिनी से कह मंजीत को बुलवा लिया। हॉल में बैठे माँ और पिताजी के चेहरों पर फिर वही गंभीरता, लेकिन आँखों में एक नरमी भी झलक रही थी। पिताजी ने कहा, ‘मंजीत, तुमने रमा की शादी के लिए जो त्याग किया, उसे हम भूल नहीं सकते। तुमने साबित कर दिया कि तुम सिर्फ रागिनी की नहीं, हमारे पूरे परिवार की भलाई चाहते हो। अब हमें कोई एतराज