05 नई चुनौतियाँ धीरे-धीरे होली आ गई। और होली बाद रंग पंचमी पर ‘मनमस्त’ जी के यहाँ फाग गोष्ठी भी। जाना नहीं चाहता था मंजीत, क्योंकि इस विषय पर कोई गीत उसने लिखा नहीं था। पर इसी आशा में चला गया कि शायद वह आए और फिर एक बार नजर भर देखूं, उसकी मीठी आवाज सुनूँ! न हो बातचीत, न उंगलियों से उंगलियों की छुअन- कोई बात नहीं, एक-दो दो घंटे का साथ ही मिल जाए, उसी से जी लूँगा! मौका मिला पहले की तरह फिर घर छोड़ने का, तो गली के अँधेरे मोड़ पर हाथ जोड़ माफी माँग लूँगा।