इश्क बेपरवाह नहीं तेरा... - 4

इसी तरह लगभग 15 दिन बीत गए,, वैशाली अब पुरी तरह ठीक लग रही थी। वो धीरे धीरे चलने भी लगी थी। आगे.......रात का समय____रात हो चुकी थी थोड़ी ठंड थी हवा में, वैशाली बालकनी में एक आराम कुर्सी पर बैठी आसमान में खिले चांद को देख रही थी। उसके चेहरे पर खुशी तो थी, वैभव के पास होने की पर एक सुना पन भी था। वैभव की आंखों में जो बेचैनी वो देखती है। उसके पिछे की वजह जाननी थी उसे..." वैशाली.... वैशू, कहा हो यार... “वैभव बालकनी के दरवाजे पर पहुंचा “ ओ तो तुम यहां हो मैं पुरे घर