राजकुमारी संध्या आज शाम के समय, वही खिड़की पर रोज़ की तरह आकर खड़ी है। लेकिन, आज उसकी नज़र डूबते सूरज की ओर है और उसे देखकर ऐसा ही लग रहा था कि वह उस डूबते सूरज की नज़रों से सुर्यांश को ढूंढ रही है। थोड़ी ही देर में संध्या की आंखों से आंसुओं की धारा बहने लगी। उस समय चंद्रमा आकाश में ऊपर आ चुका था और जैसे अपनी बेटी को रोता देखकर मन ही मन पीड़ित होता हो, वह भी लाल हो गया। चंद्रमा से और देखा नहीं गया तो उसने बादलों की चादर अपने चारों ओर ओढ़