चंद्रवंशी - अध्याय 5 - अंक 5.3

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"विनय कहाँ है तू?" सुबह के सात बजे रोम आ पहुँचा और विनय के हाथ में वो किताब देखकर बोल उठा। "पूरी रात?"  विनय ने खाली सिर "हाँ" में हिलाया।  "अरे इतना तो कोई बैराने को भी ना पकड़े रखे। तू तो इस किताब को भी नहीं छोड़ता।" बोलकर रोम ज़ोर से हँसने लगा।  "हाँ... हाँ... तेरा जोक श्रुति मैडम को सुना ही देना।" विनय ने किताब अपनी तिजोरी में रखी और फ्रेश होने उठ गया। उसके पैर पूरी रात बैठे रहने से काँप रहे थे। रोम उस समय उसके कमरे के बाहर जाकर चाय नाश्ते का ऑर्डर देने चला गया। थोड़ी देर