चंद्रवंशी - अध्याय 5 - अंक 5.1

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सांझसांझ के समय संध्या खिली है। चारों तरफ़ चकलियाँ ही चकलियाँ उड़ रही हैं। तेज़ी से पंख फड़फड़ाती हुई महल के ऊपर गोल-गोल उड़ रही थीं। महल की दीवारें और नक्काशियाँ डूबते सूरज की अंतिम रौशनी का एहसास कर रही थीं। ऊपर चकलियाँ, सामने सूरज और पहाड़ों से टकरा कर लौट रही हवाएँ वातावरण को मोहक बना रही थीं। उसी समय महल की सुंदरता में भाग लेने राजकुमारी संध्या भी खिड़की पर आकर खड़ी हो गई। राजकुमारी की आँखों का काजल थोड़ा फैलकर पलकों से नीचे आ गया था। सफेद जरीदार साड़ी में सूरज की किरणें पड़ते ही राजकुमारी के