कमरा अब भी सुलग रहा था।अगरबत्तियों की खुशबू अब धुएँ में बदल चुकी थी, और पलंग के सिरहाने लगी दीवार पर वो खून से लिखा वाक्य… अब भी चमक रहा था:**“अब तुमने देख लिया… अगली बार समझ भी जाओगे…”**अदित्य वहीं खड़ा था, उसकी उंगलियाँ काँप रही थीं, और माथे पर पसीने की लकीरें दौड़ रही थीं।उसने फौरन आशुतोष की नब्ज़ देखी —धड़कन धीमी थी, मगर थी।उसका चेहरा पीला पड़ चुका था, होंठ सूख चुके थे… जैसे कोई गहरी नींद में गिरा हो या फिर किसी डर के हाथों बंधक बना होसारे गांव में अगले ही घंटे खलबली मच गई।“वो बच