एक वर्षा भरी शामबारिश की हल्की बूंदें दिल्ली की पत्थर लगी सड़कों पर पड़ रही थीं। हवा में भीनी-भीनी महक थी — गीली मिट्टी, चाय की भाप और पुरानी किताबों की खुशबू। पुरानी हवेलियाँ भीगती हुई सड़कों के किनारे खड़ी थीं, मानो अपनी किसी भूली हुई स्मृति में डूबी हों।दिल्ली विश्वविद्यालय ,पुस्तकालय आर्यावर्त, बाल घुंघरालू. बदन पर चेक शर्ट डाले। फॉर्मल पैंट पहने वो लाइब्रेरी की एक टेबल के साथ रखी कुर्सी बैठा कुछ किताबों में अपनी नजरें गड़ाये उसको पढ़े जा रहा था ......उसकी आँखों पर चश्मा था .....तभी उसके साथ बैठे उसके दोस्त ने उसे कहा .....अरे भाई कहा