भाग्य का खेल (अगला भाग)हील टॉप की ठंडी हवाएँ और तेज़ हो चुकी थीं, लेकिन उन दोनों के बीच जो आग जल रही थी, वो उन हवाओं से कहीं ज्यादा गर्म थी। संजना हर्षवर्धन की बाहों में सिमटी हुई थी, उसकी साँसें अब भी तेज़ थीं, लेकिन उनमें अब कोई घबराहट नहीं थी—बस एक अजीब सा सुकून और अधूरे एहसास की तड़प।हर्षवर्धन ने उसकी कमर को अपनी उँगलियों से हल्के से सहलाया, जिससे संजना का पूरा शरीर सिहर उठा। उसने अपनी आँखें धीरे से बंद कर लीं, जैसे वो इस एहसास में खुद को पूरी तरह डुबो देना चाहती हो।उसने