रेगिस्तान की रातें दिन से कहीं अधिक जीवित लगती हैं। हवा, जो दिन में तमतमाकर चलती है, रात में रेंगने लगती है जैसे कोई अदृश्य साया रेत पर पाँव रखकर चल रहा हो। दूर-दूर तक पसरा सन्नाटा कभी-कभी टूटता है — किसी दूर के कुत्ते के भौंकने से, या फिर दरगाह के टूटे गुंबद से गिरती कोई पुरानी ईंट जब ज़मीन से टकराती है, तो लगता है जैसे किसी पुरानी आत्मा ने करवट ली हो।दरियापुर... एक छोटा सा गाँव, जो अब नक्शों पर तो है, पर रूहों के लिए ज़्यादा मशहूर है। कोई सड़क सीधी नहीं जाती वहाँ, और जो