2 दिन चांदनी, 100 दिन काली रात - 5

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Chapter 5: जिस रात चूड़ियाँ खुद-ब-ख़ुद टूटी थीं> "वो रात शांत थी… लेकिन हवा में कराह थी। कमरे में कोई नहीं था… फिर भी चूड़ियों के टूटने की आवाज़ आई थी। और फर्श पर, काँच नहीं… ख़ून बिखरा था।"--- Scene: आधी रात – शेखर के कमरे की रौशनी एकदम धीमीशेखर अब आदत डाल चुका था — डर की भी, और चांदनी की भी।उसकी रातें अब नींद नहीं मांगती थीं…बस “आवाज़ें” आती थीं।आज एक अजीब सन्नाटा था…और तभी — दीवार से किसी चीज़ के गिरने की आवाज़ आई।“छन… छन… छन… च्र्र्रैक!”वो चूड़ियों की आवाज़ थी — जैसे किसी ने ज़ोर