त्रयोदशम अध्यायमेवाड़ विजयबादामी में चालुक्यों की राजसभा का रिक्त सिंहासन अपने धारक की प्रतीक्षा में था। उस सिंहासन के ठीक सामने एक युवक बेड़ियों में जकड़ा हुआ खड़ा था। उसके निकट खड़े कालभोज और शिवादित्य के साथ अन्य सभासद कदाचित किसी की प्रतीक्षा में थे।शीघ्र ही राजसी वस्त्रों में एक भद्र पुरुष ने छाती चौड़ी कर सभा में प्रवेश किया। सीधा शरीर, ऊँचे कंधे, सुदृढ़ भुजाएँ और कंधे से होते हुए हाथों को अलंकृत किया हुआ राजसी अंगवस्त्र उनके क्षत्रित्व का प्रमाण देने को पर्याप्त थे। मुखमंडल पर सूर्य की आभा लिये वो पुरुष अपने सिंहासन पर विराजमान हुए।शिवादित्य ने