निशा चंद्रा नीलम कुलश्रेष्ठ रचित अभी तक तो रंग बनाती हुई पारु, चित्र बनाते हुए रॉबर्ट, दुभाषिया नईम, अजंता की गुफाएँ, काला गुलाब विचारों के वृंदावन में चक्कर लगा रहे थे कि हाथों में आ गयी, 'अवनी, सूरज और वे' एक बिल्कुल ही अलग तरह का उपन्यास। सच कहूँ तो इस उपन्यास को पढ़ने में मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ी। किसानों के विषय में बहुत कुछ पढ़ा था, परन्तु महिला किसानों पर पहली बार पढ़ा और वह भी थोड़ा बहुत नहीं, पूरा उपन्यास। महिला किसानों पर लिखा गया एक महत्वपूर्ण कदम। जिसे सार्थक बनाया उपन्यास के माध्यम से नीलम कुलश्रेष्ठ