स्त्री का श्राप - भाग 3 (अंतिम भाग)

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(बरगद के ताबीज़ पर पड़ी दरार के तीन महीने बाद)गाँव में सावन उतर चुका था, लेकिन बादलों की गड़गड़ाहट के पीछे एक अनसुनी दहशत गूँज रही थी। बरगद के नीचे बँधी ताबीज़ अब पूरी-की-पूरी दरक चुकी थी। हर रात कोई सूखी-सी हँसी हवा के साथ बहती—और वही पुराना ठंडा सन्नाटा लौट आया।एक शाम, छोटा-सा बालक मोहन बरगद के पेड़ के पास खेलते-खेलते गिर पड़ा। जब उसने उठने को हाथ बढ़ाया, उसकी उँगलियाँ ताबीज़ के टूटे टुकड़े को छू गईं। बिजली-सी सनसनी उसके बदन से गुज़री, और मोहन की आँखें पल भर को काली पड़ गईं।उस पल, जंगल की ओर से