---रात का पहला पहर था। शहर सो रहा था, लेकिन देबेन के अंदर कुछ जाग रहा था।चाँद उसके कमरे में खिड़की के ऊपर लटक रहा था - जैसे किसी ने उसका चेहरा काटकर उसका आवरण छोड़ दिया हो। हवा में कुछ था... कुछ अजीब। जैसे ज़मीन ने कुछ दबा रखा हो और आसमान उसे ठंडा करके जगाए रख रहा हो।देबेन ने जम्हाई ली। माथे पर पसीना था। एक सपना... फिर वही सपना।वह मंदिर। वह जंगल। वह आग जिसमें कोई जल रहा था। और उस धधकती रोशनी के बीच में - एक औरत। उसका चेहरा साफ़ नहीं दिख रहा था, लेकिन