ज़हन की गिरफ़्त - भाग 11

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भाग 11: वो आख़िरी रिकॉर्डिंग(जब सना की आवाज़ आख़िरी बार ज़हन में गूंजी… और सच ने सब कुछ बदल दिया) आरव की नींद अब सपनों से नहीं, बल्कि सना की अधूरी आवाज़ों से भर गई थी। हर रात कोई नया चेहरा, कोई नया सवाल — और हर सुबह एक और याद गायब। लेकिन इस बार न कोई सपना था, न कोई भ्रम। इस बार वो कुछ “सुनने” वाला था। रात के दो बजे, जब पूरा अस्पताल अंधेरे और सन्नाटे में डूबा था, आरव चुपचाप डॉक्टर मेहरा के ऑफिस में घुसा। हर चीज़ वैसी ही थी — दीवार की घड़ी, किताबों