ज़हन की गिरफ़्त - भाग 6

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भाग 6: अस्पताल की खिड़की से बाहर(जब एक बंद खिड़की… सच का दरवाज़ा बनती है) आरव के कमरे में एक खिड़की थी — एकदम चुप, एकदम जड़ी हुई। वो खिड़की, जो कभी खुलती नहीं थी। उस पर लगा काँच मोटा था, धुंधला और अपारदर्शी। तकनीकी रूप से, वो “खिड़की” थी — लेकिन असल में, वो एक नकली दीवार थी। आरव ने कभी उसे खोलने की कोशिश नहीं की थी — या शायद… कभी उस ओर देखने की हिम्मत ही नहीं की। पर उस रात कुछ अलग हुआ। फिर से वही सपना — 18 जून 2017। फिर वही दृश्य — सना