भाग 5: जब वक़्त थम सा गया थाथैरेपी रूम में सब कुछ जैसे थम गया था। दीवार की घड़ी की सुइयाँ अब भी चल रही थीं, लेकिन उस वाक्य के बाद — पूरा कमरा जैसे सुनने की हिम्मत खो बैठा था। "मैंने उसे मरते देखा है।" डॉ. मेहरा की उंगलियाँ नोटबुक के पन्ने पर रुकी रहीं। उनका हाथ धीमे-धीमे काँप रहा था। उन्होंने एक लंबी साँस ली और बहुत नर्मी से पूछा: “कब देखा था तुमने उसे मरते हुए, आरव?” आरव ने उनकी तरफ नहीं देखा। उसकी पुतलियाँ स्थिर थीं, जैसे भीतर किसी और समय का दरवाज़ा खुल गया हो।