ज़हन की गिरफ़्त - भाग 4

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भाग 4: डॉक्टर का सवाल और आरव की चुप्पीथैरेपी रूम वैसा ही था — वही हल्की सी ठंडक, वही दीवार पर लगी घड़ी जिसकी टिक-टिक हर सेकंड को चीरती थी, वही कुर्सियाँ जिन पर बैठते हुए लोग अपनी गहराइयों तक जा चुके थे। लेकिन आज… आरव वैसा नहीं था। उसका शरीर वहीं था, कुर्सी पर बैठा हुआ। आँखें खुली थीं, सांसें चल रही थीं — लेकिन उसकी मौजूदगी… जैसे धीरे-धीरे कमरे से गायब हो रही थी। उसकी आँखों में कोई एक खास दृश्य अटका हुआ था, जैसे ज़हन अब भी किसी पुराने सपने की गिरफ्त में था। वो देख रहा