काठगोदाम की गर्मियाँ - 5

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हल्दी, संगीत और एक पुराना नाम सुबह का सूरज आँगन पर ठीक वैसे ही चमक रहा था जैसे कनिका के चेहरे पर हल्की-सी बेचैनी। घर में हल्दी की रस्म का शोर था। दीवारों पर पीला रंग, कोने में ढोलक की थाप, और महिलाएं लोकगीतों में खोई हुईं। कनिका हल्दी की ट्रे हाथ में लिए आँगन में खड़ी थी। पूजा ने उसका हाथ पकड़ा और अंदर खींच लाई, “अब आप मेहमान नहीं रहीं, भाभी जैसी लग रही हो… अब तो हल्दी लगवानी पड़ेगी!”   कनिका ने हँसते हुए मना किया, लेकिन जब रोहन ने सामने से देखा, तो कुछ नहीं कहा