भाग्य का खेलघने जंगल से किसी तरह अपनी जान बचाकर भागते हुए, हर्षवर्धन और संजना की साँसे अब भी तेज़ थीं। अंधेरे से घिरा जंगल, जंगली जानवरों की आवाजें और पीछे छूटती अनदेखी परछाइयाँ अब भी उनके ज़हन में गूँज रही थीं। हर्षवर्धन ने बिना कोई वक्त गँवाए कार का दरवाज़ा खोला और तेजी से संजना को अंदर बैठाया। उसकी आँखों में अब भी खौफ था, चेहरे पर बाल बिखरे हुए थे, और पूरे शरीर में एक अनजान सी बेचैनी दौड़ रही थी। हर्षवर्धन ने अपनी कार स्टार्ट की और जैसे किसी तूफान की तरह सड़क पर दौड़ा दी।कार की