रंग बदलता आदमी-सोच का विषय।

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रंग बदलता आदमी-सोच का विषय। राम गोपाल भावुक वेदराम प्रतापति ‘मनमस्त’ के काव्य संकलन ‘रंग बदलता आदमी बदनाम गिरगिट’ कृति का कबर पृष्ठ देखकर उसे बारम्बार पढ़ने की इच्छा होती रही किन्तु विषय रोचक होते हुए भी कृति में प्रकाशित शब्दों के आकार के कारण लम्बे समय बाद दृष्टि गई है। आदमी के स्वभाव में है, अपने स्वार्थ के लिये हर समय गिरगिट की तरह रंग बदलते रहना। आपके काव्य संकलन में ऐसी ही अनेक रचनायें पढ़ने को मिल हैं- रंग बदलते आदमी की भीड़ भारी, जानना उनका कठिन है, आज प्यारे। कौन क्या रंग ले खड़े हैं, वे सभी