भाग 1: एक अनजानी शुरुआत"ये शादी सिर्फ एक समझौता है, लिआ… एक मजबूरी। लेकिन शायद इसी में हमारी किस्मत भी छुपी हो।”माँ की बातों की गूंज अब भी मेरे कानों में थी, जबकि मैं शीशे के सामने खड़ी खुद को उस जोड़े में देख रही थी, जिसे मैंने कभी पहनने का सपना तक नहीं देखा था।लाल और सुनहरे रंग की साड़ी में सजी मैं, आज दुल्हन बनी थी। लेकिन वो चमक मेरी आँखों में नहीं थी जो एक दुल्हन की आँखों में होती है। वहां सिर्फ सवाल थे – डर, अनजाना डर, और एक अजीब सा खालीपन। घर… जहां