साधकों के मन में योग को लेकर अनेक जिज्ञासाएँ थीं। प्रारंभिक अभ्यास में ही यशस्विनी ने साधकों को प्राणायाम का अभ्यास कराया । भस्त्रिका, कपालभाति से लेकर, बाह्य प्राणायाम, अनुलोम-विलोम, उज्जाई प्राणायाम, उद्गीथ प्राणायाम आदि सभी प्राणायाम साधकों ने मन से सीखे। यशस्विनी ने जब श्वास निश्वास की प्रक्रिया के लिए पूरक, कुंभक, रेचक और बाह्य कुंभक तथा श्वास लेने, छोड़ने तथा रोकने के निश्चित अनुपात की अवधारणा समझाई, तो साधक चमत्कृत रह गए। हर कहीं अनुशासन है। हमारे जीवन की भागदौड़ के कारण हमारे श्वांसों की गति भी अनियंत्रित है। अगर हम प्राणायाम के माध्यम से स्वांसों की साधना