बनारस का घाट और वो लड़की - भाग 2

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कुछ रिश्ते शब्दों से नहीं, चुप्पियों से गहराते हैं। अवनि और आरव का रिश्ता भी कुछ ऐसा ही था। घाट की सीढ़ियों पर बैठी अवनि की डायरी अब आरव के लिए जिज्ञासा बन चुकी थी। वो जानता था कि उसमें कुछ खास लिखा है—कुछ ऐसा, जो सिर्फ़ लिखा जा सकता है, कहा नहीं। एक दिन उसने हिम्मत जुटाई और पूछ ही लिया— "आप हर दिन डायरी में क्या लिखती हैं?" अवनि ने कुछ पल आरव की आंखों में देखा, फिर शांत स्वर में कहा— "चिट्ठियाँ।" "किसे?" आरव का अगला सवाल। अवनि की आंखें हल्की-सी नम हो गईं। उसने कहा— "कभी