अदित्य दरवाज़े के पास पहुँच चुका था, उसकी साँसें तेज़ थीं, और नज़रों में झलकता डर अब धीरे-धीरे गुस्से में बदल रहा था।देहलीज़ पर फर्श पर वही लाइन चमक रही थी —**"अब खेल शुरू होगा..."**लेकिन उस रोशनी में एक और चीज़ दिखाई दी —**एक सुर्ख लाल चूड़ी, टूटी हुई।**वो चूड़ी किसी आम लड़की की नहीं लगती थी।वो उसी लाल साड़ी वाली औरत की हो सकती थी... जिसे अदित्य अब तक सिर्फ छाया में देखता आया था।भीतर से कोई भागकर आया —“रामू! रामू को किसी ने खींच लिया… पीछे से!”“किधर गया?” ठाकुर गरजा।“हवेली के पीछे वाले कुएं की तरफ!”सब लोग दौड़े।